लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्ष-सी मेरी मोहब्बत,
तानाशाही में हिंदुत्व और इस्लाम-सी
तुम्हारी बेरूख़ी।
बोलो कैसे हो प्रेम-रूपी देश का निर्माण प्रिये?
तुम्हें हासिल सवा सौ करोड़ का जनमत,
मुझे सिर्फ संविधान का एकमात्र सहारा प्रिये।
कैसे मुमकिन हो मेरे प्रेम की जीत प्रिये?
Sunday, May 10, 2020
बोलो प्रिये!
अर्जुन अथवा कर्ण?
अर्जुन ज्यादा सामर्थ्यवान था या कर्ण? यह उत्तर देने से पूर्व हमें सर्वप्रथम सामर्थ्य की परिभाषा स्पष्ट कर लेनी चाहिए।
सामर्थ्य क्या है? यदि ताप सामर्थ्य है तो सूर्य सबसे ज्यादा सामर्थ्यवान, यदि शीतलता सामर्थ्य है तो जल प्रपात सबसे ज्यादा सामर्थ्यवान, यदि बल सामर्थ्य है तो सिंह एवम् अन्य बलशाली पशु सबसे ज्यादा सामर्थ्यवान। यदि मृत्यु देना सामर्थ्य है तो विश्व में व्याप्त महामारी सबसे ज्यादा सामर्थ्यवान। तो क्या इस कथन को सही मान ले? नहीं।
सामर्थ्य की परिभाषा यदि मानवता के दृष्टिकोण से देखें तो मानव का सर्वोच्च सामर्थ्य तो उसका विवेक है और धर्म एवं अधर्म के मध्य चुनाव करने का। बल, बुद्धि, विद्या, वीरता एवम् अन्य गुण तो प्रयास और अभ्यास से कोई भी प्राप्त कर सकता है। और जब आपका सामर्थ्य आपके विवेक का ही हरण कर ले तो वह सामर्थ्य अनुपयोगी एवम् क्षीण हो जाता है।
कर्ण का सामर्थ्य धर्म के लिए था ही नहीं कभी। उनका सारा जीवन मात्र सम्मान की और अर्जुन की बराबरी करने की अपेक्षा में बीता। और कुछ इसी प्रकार का सामर्थ्य कौरवों के दल में शामिल अन्य वीरों का भी था। अधर्म में धर्म का अनुशरण करते हुए अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन करना।
सबसे बड़ा सामर्थ्य मनुष्य का विवेक होता है, उसका धैर्य होता है एवम् उसका उचित रुप से, उचित दिशा में किया गया संघर्ष होता है.... जिसमें अर्जुन निर्विवाद रूप से श्रेष्ठ थे।
Tuesday, May 5, 2020
Freedom
Whispering in the years of time,
Sometimes here, sometimes there;
Nor Rosy, nor purple but
Vigilant lime,
Casting it's taste everywhere.
Those have tasted can
never explain,
For the needy only knows;
It's not in vain
Sacrificing each drop of blood for
"Dream of Freedom"
and it's worthiness to gain.
Millions died, Billions are dying,
Those understanding it's value;
Still lying!
Come on people, go own it!
How can you be only blaming
and crying......!.
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