कितना अच्छा है न...
ये शांत वातावरण
न गाड़ियों की पीं-पीं
न वो सरदर्द बढ़ा देने वाले हॉर्न
आज लोगों की
चहल-पहल भी नहीं
एकदम शांत.... उन्मुक्त।
बाहर बैठने पर आज
हवा की सरसराहट
महसूस हो रही है।
सुनाई दे रहा है
वो पत्तियों का झड़ना।
अच्छा हाँ, पतझड़ आ गया शायद।
देखो तो...,
कल तक कुछ
होश ही नहीं था।
पता नहीं कल तक
कहाँ व्यस्त थी
घर के बाहर बगीचे में लगे
इस मेहंदी के पेड़ में
एक छोटी-सी चिड़िया आती है
कई सालों से।
शायद उस पुरानी चिड़िया की कोई
नई पीढी़ होगी।
आज इसका नाचना और
गुनगुनाना भी
साफ़ सुनाई दे रहा है।
वो अंदर बंधी गाय का
पूँछ पटकना,
गली के कुत्ते का भाऊँ-भाऊँ
सब बड़ा सुरीला लग रहा है।
पता नहीं क्यों?
आज इयरफ़ोन्स लगाने की भी
जरूरत नहीं पड़ी।
ये खामोशी....संगीत से ज्यादा
अच्छी लग रही है आज।
और पता है सबसे अच्छी बात
है कि ये किसी गम की
खामोशी नहीं है।
सब शांत हैं...
प्रकृति के सम्मान में।
थोड़ा रूठी हुई है हमसे वो।
चलो कोई बात नहीं।
आज मौका देकर उसको भी
उसकी सारी बातें सुनते हैं।
चुप-चाप।
जब कह लेगी जब अपनी
सारी दिक्कतें,
सारी परेशानियां,
तो मान जायेगी।
है तो प्रकृति ही, नारी का स्वरूप।
वात्सल्य, दया और
करूणा का प्रतिबिंब।
थोड़ा समय दो....
ये सब कुछ ठीक करना जानती है।
हम करें न करें, प्रकृति अपने प्रेम का पात्र
हम सबको मानती है।
वाह!
ReplyDeleteआदरणीया प्रियंका जी सादर नमन 🙏
लॉकडाउन के चलते प्रकृति में आए सुंदर परिवर्तन या यूँ कहें कि प्रकृति का छुपा सौंदर्य जो हम मनुष्यों की मूर्खता के कारण आँखों से ओझल था उसे कितनी खूबसूरती से आपने शब्दों में उतार दिया।
" प्रकृति के सम्मान में।
थोड़ा रूठी हुई है हमसे वो।
चलो कोई बात नहीं।
आज मौका देकर उसको भी
उसकी सारी बातें सुनते हैं।
चुप-चाप।
जब कह लेगी जब अपनी
सारी दिक्कतें,
सारी परेशानियां,
तो मान जायेगी। "
जब हम प्रकृति की नही सुनते तो हमे सुनाने हेतु वह ऐसे ही रूठ जाती है।
उचित कहा आपने आज हमे उसकी भी सुननी होगी और समझना होगा कि प्रकृति को यूँ भुलाकर हमारा आगे बढ़ना संभव नही।
" थोड़ा समय दो....
ये सब कुछ ठीक करना जानती है।
हम करें न करें, प्रकृति अपने प्रेम का पात्र
हम सबको मानती है। "
वाह! आशा से भरी कितनी सुंदर पंक्तियाँ। सत्य है आख़िर माँ कब तक रूठेगी? बस कहीं ऐसा ना हो कि उसके मानते ही हम पुनः उसका दोहन करने लग जायें।
खैर....इस सराहनीय सृजन हेतु आपको हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनाएँ। माँ शारदे की कृपा आप पर बनी रहे 🙏
वाह कितनी खूबसूरत अभिव्यक्ति यूं लग रहा है lockdown के बाद प्रकृति का निखरा रूप तुमने बहुत खूबसूरती से अपनी कल्पनाओं के सहयोग से शब्द रूपी कैनवस पर उतार दिया..पहली बार आज तुम्हे पढ़ने का मौका मिला.. एक पुरसुकून सा अहसास है तुम्हारी लेखनी मे ..लिखती रहा करो..!!
ReplyDeleteसाथ ही साथ धन्यवाद आँचल इतनी प्रतिभावान मित्र से परिचय करवाने के लिए
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच( 'लोकतंत्र संवाद मंच'
ReplyDelete'नई प्रतिभाओं की खोज'
के अंतर्गत )पर 27 मई 2020 को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
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सुन्दर सृजन
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही सुंदर रचना। प्रकृति का जीवंत चित्रण।
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